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धारावाहिक 2 / वाणी वंदना / चेतन दुबे 'अनिल'

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वाणी वरदानी मुझे ऐसा वरदान देदे,
लेखनी से झर - झर झरै लागे कविता।
काव्य का प्रकाश पुंज ऐसा प्रकटा दे अंब!
जर - जर - जर - जर जरै लागे कविता।
कर की किताब यदि खोल दे तू एक बार,
फूलन - सी फर -फर फरै लागे कविता।
वीणापाणि! वीणा एक बार झनकारि दे तो,
पाद पंकजों में ढर ढरै लागे कविता।