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79 / हीर / वारिस शाह

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बेले रब्ब दा नाम लै जा वड़िया होया धुप दे नाल जहीर<ref>मुश्किल</ref> मियां
ओहदी नेक साइत<ref>शुभ घड़ी</ref> रूजू आन होई मिले राह जांदे पंज पीर मियां
रांझा वेखके तबहा फरिशतियां दी पंजां पीरां दी पकड़दा धीर मियां
काई नढड़ी सोहणी बखश छडो तुसीं पूरे हो रब्ब दे पीर मियां
हीर बखशी दरगाह थीं तुध तांहीं सानूं याद करीं पवे भीड़ मियां

शब्दार्थ
<references/>