भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पंक और पंकज / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:10, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आभा पूर्वे |अनुवादक= |संग्रह=गुलम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पसरे हुए पंक पर
खिला हुआ कमल
कमल मेरे प्यार का
बहुत प्यारा है मुझे
पर इस कीचड़ से मोह कैसे तोड़ दूँ
जहाँ से दो-दो जोड़े चरण
एक बार आ मिले थे
पंक, तुम्हें मैं प्यार करती हूँ ।