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महकती यादें / आभा पूर्वे

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कैसे दामन छुड़ाऊँ मैं
उन महकती यादों से
क्या कहूँ मैं
लौट कर आई हुयीं फरियादों से
एक ख्वाब था जो टूट गया
क्या कहूँ मैं रातों से
अपने हो जाते हैं पराए
जरा-जरा-सी बातों से ।