Last modified on 2 अप्रैल 2017, at 16:59

नवरात / माधवी चौधरी

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:59, 2 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माधवी चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बडा-बडा पंडाल सेॅ, सजलौ छै परिवेश।
दुर्गापूजा अंग केॅ, छै त्योहार विशेष।।

शोभित छैॅ संसार मेॅ, दुर्गा रोॅ नोॅ रूप।
माता लेॅ सब एक रँ, निर्धन आरो भूप।।

माता छै ममतामयी, मोहक हुनकोॅ रूप।
माता सेॅ ही छाँव छै, माता सेॅ ही धूप।।

अन्नपूर्णा छोॅ माय तों, तोॅ ही पालनहार ।
तो हीं छोॅ दुखहारिणी, महिमा अपरंपार।।

तों ही धरती रूप मेॅ, धारय छोॅ संसार।
गौरी, लक्ष्मी, शारदा, तोरे ही अवतार।।

जननी तों ब्रह्माण्ड के, तोरोॅ रूप विशाल।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव सहित, नमन करै छौं काल।।

महिषासुर संहारिणी, कात्यायनि अवतार।
नमन करै छौं 'माधवी' करोॅ जगत उद्धार।।

भावै दुर्गा माय केॅ, चुनरी, अरहुल फूल।
माता छै ममतामयी, क्षमा करै छै भूल।।

कन्या पूजै 'माधवी' करै मात के याद।
घर-घर कन्या रूप मेॅ, माँ के आशीर्वाद।।

गोड़ लगै छौं 'माधवी' करो नमन स्वीकार।
भवसागर सेॅ प्राण केॅ, माय लगाबो पार।।