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अनिल जनविजय के नाम / कांतिमोहन 'सोज़'

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(यह ताज़ा ग़ज़ल अनिल जनविजय के नाम)

क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता।
बिन कहे भी रहा नहीं जाता।।

आशिक़ी शर्मसार होती है
गर कहेँ अब सहा नहीं जाता।

मैं कि पत्थर कहीं न बन जाऊँ
तू मुझे क्यूँ रुला नहीं जाता।

तेरी ख़ुशियाँ तो तेरे साथ गईं
ग़म तेरा बाख़ुदा नहीं जाता।

मैं तो माज़ी का एक खण्डर ठहरा
आ मुझे क्यूँ गिरा नहीं जाता।

रोज़े-महशर है जानता हूँ मगर
नाम तेरा लिया नहीं जाता।

सोज़ बदज़न हुआ ज़माने से
एक तेरा आसरा नहीं जाता।।

03.04.2017