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अरुण कुमार असफल के नाम / कांतिमोहन 'सोज़'

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(यह ग़ज़ल अरुण कुमार असफल के नाम)

गर उसकी ज़ुल्फ़ परीशां नहीं तो कुछ भी नहीं।
हमारी मौत का सामां नहीं तो कुछ भी नहीं।।

सुतूने-दार<ref>फांसी का तख़्ता(मजरूह से माज़रत के साथ)</ref> पे काफ़ी नहीं सरों के चराग़
ब-आबो-ताब चराग़ां नहीं तो कुछ भी नहीं।

ये ज़िन्दगी की अलामत है इसकी फ़िक्र न कर
तेरा ज़मीर<ref>अंतरात्मा</ref> परीशां नहीं तो कुछ भी नहीं।

अदाए-ख़ास है उसकी तू जी न कर छोटा
वो बाद-मर्ग गुलफ़्शां<ref>मरने के बाद फूल बरसानेवाला</ref> नहीं तो कुछ भी नहीं।

मैं चारागर की परस्तिश करूं तो कैसे करूँ
शदीद दर्द का दर्मां नहीं तो कुछ भी नहीं।

भगाना होगा हमें ख़ौफ़नाक सायों को
दिलों में आग का अरमां नहीं तो कुछ भी नहीं।

सुख़नवरी का वो दावा कभी नहीं करता
अगर्चे सोज़ ग़ज़लख़्वां नहीं तो कुछ भी नहीं।।

3.04.2017

शब्दार्थ
<references/>