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हरिपाल त्यागी के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'
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(यह ग़ज़ल प्रिय मित्र हरिपाल त्यागी के लिए)
रात काली भी है उदास भी है।
रौशनी उसके आसपास भी है॥
मैं उसे बेवफ़ा तो कहता हूं
उसके जज़्बे का मुझको पास<ref>लिहाज़</ref> भी है।
उसके आने से मिट न जाए कहीं
ये जुदाई जो मुझको रास भी है।
आके एक बार देख ये मंज़र
घुप अन्धेरा भी है उजास भी है।
कल बहारों ने उसको रोक लिया
कुछ ख़बर कुछ मेरा क़यास भी है।
अब तो आ जा अब और देर न कर
अब तो दारू भी है गिलास भी है।
उसके दर से तो उठ चला लेकिन
सोज़ पागल है उसको आस भी है॥
2002-2017
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शब्दार्थ
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