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215 / हीर / वारिस शाह

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जो कुझ विच रजा दे लिख दितां मुंहों बस न आखिये भैड़ीए नी
सुन्ना सखना चाक नूं रखया ई मथे भौरीए चंदरीए चैड़ीए नी
जेकर मंतरकील दा ना आवे ऐवें सुतड़े नाग ना छेड़ीए नी
इके यार दे नाम तों फिदा होईए मौहरा दे के इके नबेड़ीए नी
दगा देवना होवे जिस आदमी नूं पहले रोज ही चा खटेड़ीए नी
जे ना उतरीए यार दे नाल पूरे ऐडे पिटने ना सहेड़ीए नी
वारस शाह तोड़ निभाहुनी दस सानूं नहीं दे जवाब चा टोरये नी

शब्दार्थ
<references/>