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367 / हीर / वारिस शाह

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बोली हीर आवे अड़या जा एथों कोई खुशी ना होवे ते हसीए क्यों
परदेसियां जोगियां कमलयां नूं विचों जिउदा भेत चा दसीए क्यों
जे तां आप इलाज ना जानीए वे जिन्न भूत ते जादूड़े दसीए क्यों
फकर भारड़े गौरडे ही रहिए कुआरी कुड़ी दे नाल खिड़ हसीए क्यों
वारस शह उजाड़के वसदयां नूं आप खैर दे नाल फिर वसीए क्यों

शब्दार्थ
<references/>