भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आमुख / केदारनाथ सिंह

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:45, 29 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ सिंह |संग्रह=बाघ / केदारनाथ सिंह }} बिंब नहीं<br> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिंब नहीं
प्रतीक नहीं
तार नहीं
हरकारा नहीं
मैं ही कहूँगा

क्योंकि मैं ही
सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ
मेरी पीठ पर
मेरे समय के पंजो के
कितने निशान हैं

कि कितने अभिन्न हैं
मेरे समय के पंजे
मेरे नाख़ूनों की चमक से

कि मेरी आत्मा में जो मेरी ख़ुशी है
असल में वही है
मेरे घुटनों में दर्द

तलवों में जो जलन
मस्तिष्क में वही
विचारों की धमक

कि इस समय मेरी जिह्वा
पर जो एक विराट् झूठ है
वही है--वही है मेरी सदी का
सब से बड़ा सच !

यह लो मेरा हाथ
इसे तुम्हें देता हूँ
और अपने पास रखता हूँ
अपने होठों की
थरथराहट.....

एक कवि को
और क्या चाहिए !