भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अच्छा नै लागै सिंगार / खुशीलाल मंजर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=खुशीलाल मंजर |अनुवादक= |संग्रह=पछ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जी करै छटपट आँखी में नैं नीन
रोजे-रोज ऊंगरी पर गिनै छी दिन
बाबू घरऽ में छेलां जबेॅ कुमारी
कहियो नै मऽन लागै है रं भारी
ने जानौं बाबू नें है की करलकै
कऽन निर्मोही सें नाता जोड़लकै
आंखी तऽर घूरै छऽ बाबू रऽ रीन
जी करै छटपट आँखीं में नै नीन
अच्छा नै लागै छै सिंगार पटार
की करबऽ पिहनी केॅ मोती रऽ हार
सुखी केॅ देह होलऽ हमरऽ काँटऽ
केकरासें कहबऽ कि दुख हमरऽ बाँटऽ
सोचलेॅ छेलां भैयो बाबू होलऽ उरीन
जी करै छटपट आँखी में नै नीन
केनांकेॅ कहियौं दिक्तऽ रऽ बात
आँखी सेॅ लोर चबेॅ सगरोरात
आखिर यहेॅ र कबेॅ तक जीबऽ
कऽन दिनऽ लेॅ आसरा देखबऽ
यादऽ सें नै उतरै छै मड़वा रऽ सीन
जी करै छटपट आँखी में नै नीन