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मरहूम बिटिया के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'

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(मरहूम बिटिया के लिए)

तुझसे मायूस तो हो जाऊँ कहाँ जाऊँ मैं।
ज़िन्दगी आ मुझे बहला तुझे बहलाऊँ मैं।

आ कभी सीख कभी मुझको सिखा तर्ज़े-वफ़ा
कभी थामूँ कभी उँगली तुझे पकड़ाऊँ मैं।

कभी ठुकराउँ खिलौने का तक़ाज़ा तेरा
और कभी तेरे लिए चाँद उठा लाऊँ मैं।

छेड़ख़ानी से कभी बाज़ न आए कोई
तुझसे मिलकर कभी तड़पूँ कभी तड़पाऊँ मैं।

तू है एक जोत मुझे राह दिखानेवाली
तू कोई ज़ख़्म नहीं जो तुझे सहलाऊँ मैं।

कम नहीं मैं भी तेरा काम बना सकता हूँ
ले सँवर ले कि तुझे आईना दिखलाऊँ मैं।

तेरे चेहरे से तबस्सुम का उजाला लेकर
सोज़ एक फूल की ख़ुशबू-सा बिखर जाऊँ मैं॥

2002-2017