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क्यों सहती रही तुम? / मंजुश्री गुप्ता

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क्यों प्रतिकार
नही किया तुमने?
जब पहली बार
तुम्हारे पति ने
तुमसे ऊँची आवाज में
बात की थी?
ससुराल में
बिना वजह
तुम्हें अपमानित किया गया
अंतर्मुखी तुम...
कुछ न कहा तुमने।
चुपचाप सहती रही
हमसे कुछ न कहा...
क्योंकि तुम्हें
हमारी इज़्ज़त का खयाल था।
आज तुम्हारी डायरी
हमारे सामने खुली पड़ी है
देख सकते हैं...
हम तुम्हारे आहत मन
और तुम्हारी पीठ पर
चोटों के निशान।
गुनहगार हैं हम भी तुम्हारे
हमने ही तो सिखाया था
कि तुम्हारा पति कैसा भी है
वह परमेश्वर है
और जिस घर में
तुम्हारी डोली जाये
वहां से अर्थी ही
निकलनी चाहिये।
आज...
जब इस घर से
तुम्हारी अर्थी ही निकल रही है
तो हम असहाय से
देख रहे हैं नतीजा
अपनी ही नसीहतों का!
काश, हमने तुम्हे
सिखाया होता
प्रतिकार करना
गलत बातों का