भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिसके हाथों में शमशीर / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:03, 18 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=द्वार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जिसके हाथों में शमशीर
क्या समझेगा मेरी पीर
सबको अपना चेहरा लगता
खूब बनी है यह तस्वीर
माला लेकर ही आना था
लेकर आया है जंजीर
पिंजरे में जो बन्द सुआ है
बाँच रहा सबकी तकदीर
आँसू गजलें, यारी, जिल्लत
अपनी तो इतनी जागीर
सभी एक हो गए आजकल
प्यादा, फरजी और अमीर
क्या फिर दिल अमरेन्द्र का टूटा
बहुत हो गया है गम्भीर।