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जिसके हाथों में शमशीर / अमरेन्द्र

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जिसके हाथों में शमशीर
क्या समझेगा मेरी पीर

सबको अपना चेहरा लगता
खूब बनी है यह तस्वीर

माला लेकर ही आना था
लेकर आया है जंजीर

पिंजरे में जो बन्द सुआ है
बाँच रहा सबकी तकदीर

आँसू गजलें, यारी, जिल्लत
अपनी तो इतनी जागीर

सभी एक हो गए आजकल
प्यादा, फरजी और अमीर

क्या फिर दिल अमरेन्द्र का टूटा
बहुत हो गया है गम्भीर।