Last modified on 20 अप्रैल 2017, at 08:46

नाथ ! तुम कब से हुए विरागी? / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:46, 20 अप्रैल 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नाथ ! तुम कब से हुए विरागी?
कब से टेक दया की छूटी, यह असंगता जागी?

जग की चिंता से मुँह मोड़ा
दीनबंधु कहलाना छोड़ा
कब से सूत्र भक्ति का तोड़ा करुणा, ममता, त्यागी ?

माना मुझे न सद्गुण भाये
दोष न मेरे जायँ गिनाये
जो अपमान-व्यंग-शर खाये था उनका ही भागी

याद करो पर निज प्रण भारी
क्या न क्षमा का हूँ अधिकारी!
मैंने सब कुछ छोड़, तुम्हारी पदरज ही, प्रभु! माँगी

नाथ ! तुम कब से हुए विरागी?
कब से टेक दया की छूटी, यह असंगता जागी?