भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेरी बेरी बरजौ दुलरुआ बाबू / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:32, 27 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> बेरी बेरी<ref>ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेरी बेरी<ref>बार-बार</ref> बरजौं<ref>मना करती हूँ</ref> दुलरुआ बाबू, बाबू माली फुलबरिया जनु<ref>मत</ref> जाहो<ref>जाओ</ref> हे।
ओहि<ref>उस</ref> फुलबरिया में रहत मालिनो बेटी, राखत नैना में लोभाय हे॥1॥
हथियो साजल घोड़बो साजल, साजल घोड़ा के पेटार<ref>घोड़े का साज; जरीदार चादर, जो घोड़े के ऊपर रखा जाता है</ref> हे।
साठ रुपैया के घोड़ा जीन<ref>घोड़े की पीठ पर रखा जाने वाले एक साज</ref> साजल, साजल बरियात जेठ भाई हे॥2॥
हाथी भींजल घोड़बो भींजल, भींजल घोड़ा के पेटार हे।
साठ रुपैया केरा घोड़ा जीन भींजल, भींजल बरियात जेठ भाई हे॥3॥
रिमिझिमि रिमिझिमि नदिया जे बहै<ref>बहती है</ref>, ओहि में दुलरैती<ref>दुलारी</ref> धिआ नहाय हे।
हँसी हँसी दुलहा बाबू चिठियो<ref>चिट्ठी</ref> जे लिखै<ref>लिखते हैं</ref>, दहुन गय<ref>दे आओ</ref> कनिया दाय के हाथ हे॥4॥
बाबा के डलवा<ref>डाला; बाँस की फट्ठियों का बुना हुआ एक प्रकार का गोल टोकरा</ref> माय के पेटरिया<ref>पिटारी</ref>, सेनुर भोगारल<ref>सिंदूर लगाया हुआ</ref> धनि माँग हे।
अपनी मौरिया सम्हारिहऽ<ref>सँभालना</ref> हो बाबू, नहछू करैते कुम्हलाय हे॥5॥
अहि<ref>इस</ref> पार मलिया भैया मौरिया उरेहै<ref>बनाता है; चित्रित करता है</ref>, ओहि पार दुलरुआ पूता ठाढ़<ref>खड़ा</ref> हे।
बोलै दुलरुआ बाबू मलिया रे भैया, ससुर नगरिया कते<ref>कितना</ref> दूर हे॥6॥
ऊँची बँगलवा नीचे दुअरिया, दुअरे चननमा के गाछ हे।
ओहे<ref>वही</ref> जे छिअऽ<ref>है</ref> दुलरुआ तोहर ससुररिया, चारो दिस बाजै निसान<ref>डंका; एक प्रकार का बाजा</ref> हे॥7॥

शब्दार्थ
<references/>