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मधु सुरभिमुख कमल सुन्दर / कालिदास
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मधु सुरभिमुख कमल सुन्दर
- लोघ्र के से ताम्र लोचन,
कुरुव्रकों से ग्रथित अलकें
- पीनगुरुतर दीप्तिमयस्तन
सुमंसल मनहर नितम्ब
- किसे न कर देते सुचंचल
काम के यह अग्रदूत
- सुरभि भरे निश्वास आकुल
ओ विसुध सीमन्तनी!
- मधु वंदनाकर प्राण विह्वल
प्रिये मधु आया सुकोमल!