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ख़्वाब थे मेरे कुछ सुहाने से / शोभा कुक्कल

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ख़्वाब थे मेरे कुछ सुहाने से,
आपको क्या मिला मिटाने से।

राहे-हक़ पर जो लोग चलते हैं,
ख़ौफ़ खाते नहीं ज़माने से।

हमको दिल का सुकून मिलता है,
फाका-मस्तों को कुछ खिलाने से।

बद्दुआ मत गरीब की लेना,
बाज रहना उसे सताने से।

बन के आते हैं कैसे कैसे लोग
ऐ खुदा तेरे कारखाने से।

मुस्कुराते रहो खुदा के लिए
फूल झड़ते हैं मुस्कुराने से।

उन से मिलती हूँ मैं अदब के साथ,
लोग मिलते हैं जब पुराने से।

कह के अच्छी ग़ज़ल भी ऐ शोभा
डरती हो किस लिए सुनाने से।