जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।
मौन हैं मेरे अधर औ'  
असह-पीड़ा, ज्वार मन में,
है समय तम से घिरा यह 
ढल चुका रवि है गगन में।
पर मिटा दो यह हताशा 
भर हृदय में आस निर्मल। 
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।। 
 
प्रश्न-झंझावात मन में 
मोम - सा गलता हुआ तन,
नेह की चाहत में तपकर 
झुलस बैठा है शलभ-मन। 
जल हृदय बन दीप-बाती 
प्रेम का कर पंथ उज्ज्वल।
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।। 
ये भयावह रात काली 
इक न इक दिन टलेग़ी,
है अभी जो वेदना वह 
स्वतः ही मजबूर होंगी। 
पूर्ण करने यह तपस्य़ा
धीर रखकर, रहो निश्चल। 
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।