भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्मीदें / वीरा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:08, 3 जून 2008 का अवतरण
इन्तज़ार की आँखों-सा
रुका हुआ है
नदी का पानी
उन उम्मीदों के लिए
जो ढेर दियों-सी
झिलमिलाती
हाथों-हाथ
चली आ रही हैं