भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़दीकी / वीरा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:27, 3 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरा |संग्रह=उतना ही हरा भरा / वीरा }} समुद्र इतना नज़दी...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समुद्र इतना नज़दीक है

कि मुझे उसका

कभी दूर होना

याद ही नहीं


यात्राएँ

उसकी छुअन में घुल गई हैं

पानी में हवा की तरह