भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करता उसे बेकरार कुछ देर / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:07, 3 जून 2008 का अवतरण (New page: करता उसे बेकरार कुछ देर<br> होता अगर इख्तियार कुछ देर<br><br> क्या रोयें फ़रेब-...)
करता उसे बेकरार कुछ देर
होता अगर इख्तियार कुछ देर
क्या रोयें फ़रेब-ए-आसमाँ को
अपना नहीं ऐतबार कुछ देर
आँखों में कटी पहाड़ सी रात
सो जा दिल-ए-बेक़रार कुछ देर
ऐ शहर-ए-तरब को जाने वालों
करना मेरा इन्तजार कुछ देर
बेकैफी-ए-रोज़-ओ-शब मुसलसल
सरमस्ती-ए-इन्तेज़ार कुछ देर
तकलीफ-ए-गम-ए-फिराक दायम
तकरीब-ए-विसाल-ए-यार कुछ देर
ये गुनचा-ओ-गुल हैं सब मुसाफिर
है काफिला-ए-बहार कुछ देर
दुनिया को सदा रहेगी नासिर
हम लोग हैं यादगार कुछ देर