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कहता है बाजुओं का ज़ोर / शमशेर बहादुर सिंह
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कहता है बाजुओं का ज़ोर, सारे जहाँ को तोलकर
मालिके-दो जहाँ! इधर देख के मेरा मोल कर!
आज भी हैं वो मनचले, आज भी हैं वो सिरफिरे
तीरो-सनाँ की बाढ़ पर, चलते थे सीना खोलकर!
इसमें तो आग है बहुत, इसका तो ख़ून गर्म है--
बोले वो रख के दिल पे हाथ, और जिगर टटोलकर।
बातों में अपने रंग ला, लहज़े को शोख़तर बना
शर्तों को लोचदार रख, वादों को गोलमोल कर !!
तर्ज़े-अदा इशारा हो, अब ये नहीं तरीके-फ़न
राज़ की बात भी कहो, 'शम्स', तो साफ़ खोलकर!