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"........." प्रति / गोपालप्रसाद रिमाल

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कुन्नि (कुन अल्लारेपनमा)
कुन जून लिपेको सरमा,
कुन सूर्य फुलेको नभमा,
कुन चरीको बोली फुटेको,
कुन फूल फुलेको वनमा,
कुन पर्वतको काखमा,
कुन शान्ति-नदी तटमा
मैले चुनेथेँ घर !
अब ती घरका खर गहारा
हुरी-भूमरीमा घुम्दछन्,
हेर्न नसकी चुहिँदा यी आँखा
पग्लिन्छन् ! थुनिन्छन् !