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तन इसका माटी से बना है / रामदेव महाबीर

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तन इसका माटी से बना है
आँख में अग्नि जान।
पानी से है जीव बना
आकाश बना है काल।
हवा से है नाक बना
यह पाँच तत्व महान।
यही पाँच से बना सरीरा
तापर देव करत गुमान।।

माटी का है पुतला तू
माटी को रौंदत जाय
माटी में मिल जाय।।
देव हृदय में बास करत है
जन मत से ले आज
माटी में मिल जाय जोहीं ये
छोड़ दिहिन सब साथ।।
देव तोरा यह कर्म है
माटी को तू ही सजाय
भट्टी में रहे आग दिहिन
और माटी को दिहिन तपाय

बिना बिचारे जो करे
जग में कोई काम।
घोर दुख पावत वही
ना पावत चैन आराम
आराम की खान दान है
जो दे कर ना करे बखान।
पावत वही सुख जग में
और बनता बहुत महान।।

तिनका तिनका देकर के
तू सबके मन को जीत
जो न दिया तिनका जग में
वह जग को कैसे जीत
ये जीवन ही क्या जीवन है
जो काम किसी के आ न सके।
दीन दुखी कंगालों को
टुकड़ा रोटी खवा न सके।।

जीवन साथी जीवन तक
धम्र का साथी पुनर्जन्म तक
साथ बनाना किसे है साथी
बनाले साथी सोच समझ कर।।

जो ज्ञान तुम्हारे पास है
तरक तराजू पर तौला कर
जो बातें मिलती हैं तुम्हें
उसे धरम कसौटी पर देखा।।

तरना है तो कर ले प्यारे
अच्छी संगति के साथ।
किया बुरी संगति जन जोहीं
ना हुआ करम से माफ।।

जो माँगा है जग में तू ने
कदम कदम पर पाता है
भरा पात्र में देव कभी
कुछ नहीं भर पाता है

हे मानव तू अभी से चेत
यही करम है तेरी खेत।
बोया जैसा बीज तूने
फल वैसा ही काटेगा।।

माली आया बाग में
चुनता फूल निहाल।
ये दृश्य कलियाँ देखी
कल है मेरा हाल

तू क्या माया में उलझा है
जब माया रहे न साथ।
फिर ऐसी माया को खोजिए
जो रहत बसत दिन रात।