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तुम्हें बाँधना चाहता हूँ मैं / श्रीनिवासी

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तुम्हें बाँधना चाहता हूँ मैं
एक ही राष्ट्र में
बिना किसी परीकथा के
जबकि शब्द में हम हैं सरनामी
लेकिन कर्म में अभी भी
निग्रो, जावी, चीनी, और हिन्दुस्तानी
बदल सकता हूँ तुम्हारे चर्म के
कर सकता इलाज तेरे हृदय का
एक फर्ण प्रार्थना में

कई बार यही आग्रह
देश में आँख मूँदकर अब चलना नहीं
खेलो उन बच्चों से जे तेरे खत के नहीं
बोलो सभी जाति की भाषा
करते सभी भोजन दुनिया के
तुम्हें बाँधना चाहता हूँ मैं
एक ही राष्ट्र में
बिना किसी परीकथा के।