भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मृगासनमा सिंहको आशन / राजेन्द्र थापा
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:56, 31 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= राजेन्द्र थापा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मृगासनमा ढल्केर वस्दा, सिंहलाई दिनरात मोज हुन्छ
सिंहको आसन छेऊ वस्दा, मृगलाई दिनरात वोझ हुन्छ
सिंहलाई सन्काई सन्काई, जव मृगहरु ढालिन्छन्
चाकरीमा वसेका श्याल र गिद्धलाई, दिनरात मोज हुन्छ