भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शुक्लाजी की समस्या / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:04, 4 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर }} शुक्ला ऐसा बहुत कुछ करता है जिससे शुक्ल...)
शुक्ला ऐसा बहुत कुछ करता है
जिससे शुक्ला न लगकर तिवारी लगे
एतलिस्ट गुप्ता तो लगे ही
लेकिन इस चक्कर में वह ऐसा बहुत कुछ कर जाता है
जिससे वह वर्मा लगने लगता है
जिसे वह बिल्कुल पसंद नहीं करता
जो बनने कि वह सपने में भी नहीं सोचता
त्रासदी यह है कि वह संभले तब तक
लोग उसे वर्मा कहना शुरू कर देते हैं
वह कितना ही कहे वह वर्मा नहीं , शुक्ला है
कोई सुनता नहीं
शुक्ला इससे परेशान है
तिवारी जी और गुप्ता जी को इससे ख़ुशी बेहिसाब है।