भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डर / वीरा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 4 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरा |संग्रह=उतना ही हरा भरा / वीरा }} बच्चे ने दिन में ब...)
बच्चे ने
दिन में
बन्दर देखा
वह डरा
मैं हँस कर
अपने काम में लगी रही
बच्चा
रात में चौंक कर उठा
उसने आसपास देखा
रोता ही रहा
मैं तब से लगातार
जाग रही हूँ
मेरे बच्चे के सपने में
कौन आया होगा?