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पग्लिएर पोखिऊँ झैँ / सुमन पोखरेल

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पग्लिएर पोखिऊँ झैँ जलीजली सकिऊँ झैँ
लाग्छ मलाई आज आफू यतै कतै बिलाऊँ झैँ

सौन्दर्यलाई चुमेर आज साँच्चै गलूँ म
पग्लिऊँ सामिप्यमा आलिङ्गनमा जलूँ म
प्रेमको उत्कर्षमा अकारण नै रोऊँ झैँ
पग्लिएर पोखिऊँ झैँ, जलीजली सकिऊँ झैँ

डुबूँ मौन मौन भित्र भित्र कहाँ कहाँ म
भेटूँ नौलो केही त्यहाँ, केही नौलो दिऊँ म
लाग्छ आफू सम्पूर्ण नै सिद्धिएर फिरूँ झैँ
पग्लिएर पोखिऊँ झैँ, जलीजली सकिऊँ झैँ