भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रसङ्ग अर्कै छ / सुमन पोखरेल

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:35, 31 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुमन पोखरेल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुटु फेरिए झैँ, धड्कनको ढङ्ग अर्कै छ
छोयो कसले मनको तार, तरङ्ग अर्कै छ
 
कतै थिएँ मरेतुल्य तिमीलाई भेट्नु अघि
यो कुन म बाँच्दैछु, अचेल उमङ्ग अर्कै छ
 
हर्षित् भई नयाँ जोशले धड्किँ दैछ मुटु
हेरेथि'न् मायाले आँखामा, दङ्ग अर्कै छ
 
कति धेरै पोखिछ्यौ ममाथि तिम्रो माया
ऐनाले भन्यो मेरो मुहारको रङ्ग अर्कै छ
 
खुम्च्याइ छ निधारमा नजर छ अन्तै कतै
मुस्काऊ चाहे जति नै कुरो छर्लङ्ग अर्कै छ
 
भेट्न आइन् उनी, विचार गर्नु सुमन !
माया कै कुरो गर्लास्, आज प्रसङ्ग अर्कै छ