भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिस्तारै आयौ जीवनमा मेरो / निमेष निखिल
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:19, 1 जून 2017 का अवतरण (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= निमेष निखिल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बिस्तारै आयौ जीवनमा मेरो बिहानी बनेर
हरायौ किन बिर्सेको कुनै कहानी बनेर
चल्दछ हावा उड्दछ पात हरायो वसन्त
आँसुको भेल नयनबाट बग्दछ अनन्त
पलाँस फूल न कतै चलेँ न झर्न सकेँ म
यादमा तिम्रो न बाँच्न सकेँ न मर्न सकेँ म
नदेऊ धोका हे दैव बरु जन्म नै नदेऊ
जिउँदै मारी हरेक पल यो प्राण नलेऊ।