Last modified on 5 जून 2008, at 08:54

हम तो हैं परदेस में / राही मासूम रज़ा

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:54, 5 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राही मासूम रज़ा }} हम तो हैं परदेस में, देस में निकला हो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद
अपनी रात की छत पर कितना तनहा होगा चांद

जिन आँखों में काजल बनकर तैरी काली रात
उन आँखों में आँसू का इक, कतरा होगा चांद

रात ने ऐसा पेंच लगाया, टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चांद

चांद बिना हर दिन यूँ बीता, जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चांद