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सुन्ने कोही छैन / निमेष निखिल

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सुन्ने कोही छैन त्यस्तो व्याख्यान भएँ म
पात्र कुनै नभएको आख्यान भएँ म
 
छैन कतै सिर्जना र निर्माणको सेतु
विपत्तिलाई बोकिहिँड्ने विज्ञान भएँ म
 
जिन्दगीको गति छैन लुट्यो समयले
चहलपहल छैन कुनै सुनसान भएँ म
 
टाढा धेरै टाढा भए आफ्ना भन्नेहरु
आफ्नै आँगनीमा आज अन्जान भएँ म।