भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ताजमहल और मेरा प्रेम / सुमन पोखरेल

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:28, 8 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुमन पोखरेल |अनुवादक=सुमन पोखरेल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारा यौवन भर
सीने पे एक प्रेमाकुल हृदय को ही ले कर
चलता आया हूँ ।

खिलाकर दिल को
मुहब्बत का सामियाना बना लें जैसा लगता ही आया है ।
अनुराग की गहराइयों पे डूब के दिल के भीगने पर
निचोडकर प्रिया को ही भिगा डालूँ जैसा होता ही आया है ।
कभी न मिटने वाला एक चित्र
हृदय के रंग से ही बना डालूँ जैसा होता ही आया है ।

खडे हो कर आज
इस ताजमहल के सामने,
सूर्यकिरण के स्पर्श से शरमा रहे संगमरमर की मुस्कुराहटें,
प्रेम की ऊँचाई को छु के मदहोश दौडरहे हवाओं के गुच्छे,
परिक्रमरत द्रष्टाओं के सीने में गूंज रहे प्रेमास्पद संगीत
और
अपने ही दिल के अन्दर छलकते हुए
रंगीन अनुभूति के सुवासित मादकता पे खो कर
मैं खुद को ही भूल रहा हूँ ।

इस वक्त मैं
शाहजहाँ को याद कर रहा हूँ या मुमताज को
या याद कर रहा हूँ खुद को ?
भ्रमित हूँ
अचेत हूँ, अपने ही सीने की फैलावट से दबकर ।

शाहजहाँ,
जिस ने बादशाह को प्रेमी से बौना बना दिया
जिस ने मजार को मन्दिर
प्रेमिका को ईश्वर
और प्रेम को मजहब बना दिया ।

कम से कम दो फर्क तो जरूर है हमारे बीच
वह शहंशाह था,
मै
उस के जैसा वैभवशाली होता तो
ताजमहल बनाने के लिए
अपनी प्रेमिका की मौत का इन्तजार नहीं करता ।