भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भीड़ / गौतम अरोड़ा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:02, 9 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भीड़
च्यारूंमेर भीड़
दौड़-भाग
ठसौ-ठस फसयोड़ा मिनख
एक लारै भागतौ एक
मिनख में मिनख फसयोड़ो
बातां में बात
हाकै में दबती आवाज
के दोरो सांस लेणौ।
हर आदमी
खबण बणन री दौड़ में
जिकां बण्या खबर
वै इतिहास में मंडण री दौड़ में
अर जिका इतियासू व्हैगा
वे पाछा खबर री दौड़ में
भीड सूं अळगो
एक खूणै, बैठ म्हैं
मुळकूं भीड़ माथै
स्यात, भीड़ सारू अछूत हूं मैं
करूं इण खूणै
सिरजण, मुळक रो।
मुळक,
नी व्है बासी अर नी व्है इतिहासू।