भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जलम : दो / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:18, 9 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़ |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठाह थोड़ी हो
क्यूं जलम्यां हां
आपां सगळा
करणों कांई है
इण धरा माथै।

सारा कारण
धारया है खुद
ओटी है
हांती-पांती
जिम्मेदार्यां
चलाया है पग
घूम-घूम
देख्यो है जग।

आपरै हाथां कमाया है
दुख-दरद-धन
आज छूटै है जद
मांदी पड़ती सांसां
ढूंढां जलमदाता
कोई परमेसर
जको टोर दै कदास
दो चार पांवडा
जूण रा और।