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च्यार कवितावां : दो / प्रहलादराय पारीक

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दिन ऊग्यां पैली
आतंक री धूड़
अखबार
ल्यार पटकी
म्हारै बारणै।
म्हारी आंख्यां मांय गडगी
आंख्यां डबडबा’र
भरीजगी