भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हारा पिताजी / गौरीशंकर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 11 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौरीशंकर |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
म्हारा पिताजी
टाबर ज्यूं पाळी
जमीन
म्हारी मा
खेत री सींव
माथै लगाया हा रूंख
म्है पाळया हा सुपना
रूंख रै पैटे
घरवाळां
कब्जौ कर लियै
उण जमीन माथै
उण दिन
सुपना बिसरग्या हा।
रूंख रोया हा
म्हारै समचै
म्हारी मा
म्हारौ बापू कूक्या हा
टाबर ज्यूं।
बां रूंखा रै लाग’र
म्हूं
उण जमीन नै देखूं
रूंखां नै देखूं
निसांसो हो जाऊं।