भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भान : एक / गौरीशंकर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:54, 11 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौरीशंकर |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखो तो सई
टाबरां री आंख्यां रो च्यानणौ
कित्ती हूंस व्है
भान चुगण री
ताकती रैवे आंख्यां
भान नै
खथावळ सूं खथावळ
भान भैळी करण री
सांची
गांव जींवतो देख्यो
ब्याव में।