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दोनां कांनी / गौरीशंकर
आशिष पुरोहित
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दोनां कानीं
फगत
चुप्पी ...
नजीक थोड़ा‘स
आंतरौ
बस बातां व्हैरी
निजरां सूं
देखूं
देखतो जाऊं।