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प्रीत रा गीत / राजेन्द्रसिंह चारण

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आज मानखौ
मानखां ने‘ई खावै है
फेर भी ई नै रत्तीभर
सरम नीं आवै है
आंख्यां री लाज मिटगी
संवेदणा
व्यावहारिकता गिरगी
अबै थूं ई बता
म्हारी गौदड़ी
कियां लिखूं मैं
प्रीत रा गीत।