गिड़गिड़ाना / आनंद कुमार द्विवेदी
“प्रेम माँगने से नहीं प्राप्त होता”
कहा किसी सक्षम व्यक्ति ने
उसने समझ लिया होगा प्रेम को
मैं अगर उसकी समझ से चला
तो चला ही जाउँगा फिर
तुम्हारे देश से.…
जैसे चले जाते हैं प्राण
किसी भी शरीर से,
उसके पास होगी सामर्थ्य
होगा पराक्रम
निर्मित कर लेगा वह अपनी दुनिया स्वयं
जहाँ वह अपनी मर्जी से चुन सके प्रेम
मैं मूरख अगर चुनूँगा भी
तो आँसू ही चुनूँगा जन्म जन्म
कितना सहज रिश्ता है हमारा तुम्हारा
रो देना मेरे लिए आम बात है
रुला देना तुम्हारे लिए !
जो कर्ता हैं वह नहीं गिड़गिड़ाते
देख लेते हैं केवल गिड़गिड़ाना
मुस्करा पड़ते हैं मन ही मन
समझकर मोह, भ्रम, बेवकूफ़ी, और कमजोरी किसी की
जो प्रेम में होते हैं
वो नाक रगड़ते हैं दिन रात प्रियतम की एक झलक के लिए
वो कुछ नहीं करते
प्रेम स्वयं फूंक देता है
मान सम्मान के महल को सबसे पहले,
ह्रदय में जल का सोता फूट पड़ता है
आँखें ख़ुशी पाकर भी बरसती हैं और गम पाकर भी ….
सुनो !
मैं एक ऐसे ही मूरख को जानता हूँ
कभी फुर्सत मिले तो जानने की कोशिश करना
कि कैसा है वह !