भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इसी घर में लगातार / प्रभात त्रिपाठी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 21 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= प्रभात त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादलों की तरह मण्डराते हैं शब्द
अन्तस के आकाश में
आओ हम छिप जाएँ घर में
बच्चों को डराती है माँ
 
आनेवाली बारिश को एहतियातन
तूफान बनती है माँ
तूफान में तिनके-सा असहाय
एक मुद्दत से रह रहा हूँ
इसी घर में लगातार

यहीं मैंने जाना प्यार
यहीं मैंने देखी नफ़रत
यहीं मुझे मिली
अपनी बेटी सी सगी
एक अजीबोगरीब राहत

यहीं मुझे पता लगा
भले ही सारा कुछ शब्द है
पर मै वह नहीं लिख रहा
जो है
जो था
जो होगा
मैं कुछ और लिख रहा हूँ