भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साथ / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:02, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक शुभदर्शी |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ऊ जीवी रहलोॅ छेलै
आपनोॅ मिट्ठोॅ सपना के साथें
खुशी-खुशी
ऊ जीवी रहलोॅ छै आबें टूटी केॅ
अपनोॅ टूटलोॅ सपना के साथें
कोय जीयै छै जेनां केॅ
अपनोॅ ढहलोॅ-ढनमनैलोॅ मकानोॅ में
फटलोॅ-चिटलोॅ चादर ओढ़ी केॅ
टूटलोॅ-फूटलोॅ बरतनोॅ के साथें।