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तटस्थता / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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पछियें सें पूरब तरफें
एक प्रेत रोॅ हँसी
दिशा-दिशा केॅ थर्रेतैं गूंजी गेलै
क्रूरता सें भरलोॅ ओकरा अट्टहासोॅ सें
सरंग तांय कांपी गेलै
मतुर हमेशा सें तटस्थ बनी केॅ देखै वाला
दिशा चूपेॅ रहलै
ई जानी केॅ भी
कि तटस्थ बनी केॅ देखैवाला भी
अपराधी होय छै
समय ओकरा कभी माफ नै करतै
आरो एक दिन
वें नै चाहै छेलै तहियोॅ
चुप रहै के आदतें ओकरा डँसी लेलकै
आरो ऊ प्रेत रोॅ हँसी
एक बहुत बड़ोॅ युद्ध में बदली गेलै
आरो इतिहासें गर्व सें भरी केॅ लिखलकै
कि कृश्ण आय फेरू एक दाफी
हारी गेलोॅ छै दुरयोधन सें
अपना ही कुलवंश के लोगोॅ सें
आरो आबेॅ
वहाँ कुछ नै छेलै
जौं कुछ्छू छेलै तेॅ एक बच्चा
आपनोॅ माय के छाती सें चिपकलोॅ
कानतें, चीखतें, चिल्लैतें हुअें।