Last modified on 7 जून 2008, at 18:12

बैलगाड़ी / भगवत रावत

Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:12, 7 जून 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बैलगाड़ी
एक दिन औंधे मुँह गिरेंगे
हवा में धुएँ की लकीर से उड़ते
मारक क्षमता के दंभ में फूले
सारे के सारे वायुयान

एक दिन अपने ही भार से डूबेंगे
अनाप-शनाप माल-असबाब से लदे फँसे
सारे के सारे समुद्री जहाज़

एक दिन अपनी ही चमक-दमक की
रफ्तार में परेशान सारे के सारे वाहनों के लिए
पृथ्वी पर जगह नहीं रह जायेगी

तब न जाने क्यों लगता है मुझे
अपनी स्वाभाविक गति से चलती हुई
पूरी विनम्रता से
सभ्यता के सारे पाप ढोती हुई
कहीं न कहीं
एक बैलगाड़ी ज़रूर नज़र आयेगी

सैकड़ों तेज रफ्तार वाहनों के बीच
जब कभी वह महानगरों की भीड़ में भी
अकेली अलमस्त चाल से चलती दिख जाती है
तो लगता है घर बचा हुआ है

लगता है एक वही तो है
हमारी गतियों का स्वास्तिक चिह्न
लगता है एक वही है जिस पर बैठा हुआ है
हमारी सभ्यता का आखिरी मनुष्य
एक वही तो है जिसे खींच रहे हैं
मनुष्यता के पुराने भरोसेमंद साथी
दो बैल।