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सत्यानंद के दोहे-2 / सत्यानन्द

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केनां हक मारै हुनी, ‘सत्या’ नै छौं नाप
मूसा मांनी में जनां, ढुकी जाय छै साँप ।

मदद करी दौं केकरो, फुर्सत नै छै पास
दिन काटी लेतै सभैं, खेली-खेली तास ।

रंग-रूप में नै फँसोॅ, असल चीज छै चाल
मिरचा करुवे लागथौं, हरा रहेॅ या लाल ।

‘सत्या’ दुक्खें देलकै, हमरा एत्हैं झोल
आँखी में नै नीन छै, ठोरोॅ पर नै बोल ।

विकट-सें-विकट काम के, ‘सत्या’ सरल उपाय
लेरू आगू लै चलोॅ, आपन्है अयतै गाय ।

सरङ लगै छै भूत रं मौसम लगै परेत
‘सत्या’ सूखी जाय जों, कादोॅ करलोॅ खेत ।

हिरदै में नै छौं अगर, निज माटी लेॅ मोह
खोजी लेॅ निज वासतें, मंदारोॅ पर खोह ।

भिड़लोॅ छोॅ तेॅ राखिहोॅ, ‘सत्या’ मन में चेत
लार अगर जित्तोॅ रहेॅ, पटवे करतै खेत ।