भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-4 / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:56, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश बाबा |अनुवादक= |संग्रह=दोहा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

25
कोनी तरह के संस्कृति, पनपी गेलै आय
डैड बनल जित्तो पिता, ममी कहाबै माय

26
नारी रीझै तब मिलै, जगती केॅ बरदान
तुलसी केॅ फटकार सें, मिलल रहै भगवान

27
बिन घरनी के घर छिकै, बिना चान के रात
बिन कत्था के पान रं, पिया बिना अहिवात

28
नर नारी के बीच में, होथैं छै तकरार
बुद्धिमान के चाहियो, डाली दै हथियार

29
बेटी तेॅ लछमी छिकै, अपनों घोॅर बसाय
भूलै नै छै वें तबो, नइहर, बाबू, माय

30
‘बाबा’ नागिन जौं डँसै, जान बलुक बचि जाय
लेकिन जौं नारी डँसै, तब नैं कोय उपाय

31
सतसंगो में अब कहाँ, छै पहिलो रं बात
फर्जी आध्यात्मिक बनी, लोगेॅ मारै काँत

32
महिमामंडित होय छै, दागी सब ठो आय
कहिने नी ‘बाबा’ तहंू, लै छो नाम कमाय